Wednesday 15 February 2017

क्या विदुर दुर्योधन को जन्म के समय ही मारना चाहते थे ?



पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा की कैसे कौरवों के आगमन  के समय ही हस्तिनापुर में अशुभ संकेत गूंजने लगे थे, आगे पढ़ते हैं कि कैसे विदुर ने दुर्योधन को जन्म के समय ही पहचान लिया था, और धृतराष्ट्र को इस बारे में आगाह किया था…

एक साल बाद, पहला घड़ा फूट गया और उससे एक विशाल शिशु निकला जिसकी आंखें सांप की तरह थी। मतलब उसकी आंखें झपक नहीं रही थीं, वे स्थिर और सीधी थीं। फिर से अशुभ ध्वनियां होने लगीं और अशुभ संकेत दिखने लगे। जो चीजें रात में होनी चाहिए, वे दिन में होने लगीं। नेत्रहीन धृतराष्ट्र को महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ है, उन्होंने विदुर से पूछा, ‘यह सब क्या हो रहा है? कुछ तो गड़बड़ है। कृपया मुझे बताओ, क्या मेरा बेटा पैदा हो गया?’ विदुर बोले, ‘हां, आपको पुत्र की प्राप्ति हुई है।’ धीरे-धीरे सारे घड़े फूटने लगे और सभी बेटे बाहर आ गए। एक घड़े से एक नन्हीं सी बच्ची निकली।

विदुर ने बताया, ‘आपके 100 पुत्रों और एक पुत्री की प्राप्ति हुई है। मगर मैं आपको सलाह देता हूं – अपने बड़े बेटे को खत्म कर दीजिए।’ धृतराष्ट्र बोले, ‘’क्या, तुम मुझे अपने ज्येष्ठ पुत्र को मारने के लिए कह रहे हो? यह क्या बात हुई?’ विदुर ने कहा, ‘अगर आपने अपने ज्येष्ठ पुत्र को मरवा डाला, तो आप अपना, कुरु वंश और मानव जाति का बहुत बड़ा उपकार करेंगे। आपके फिर भी 100 बच्चे रहेंगे – 99 बेटे और एक बेटी। इस बड़े पुत्र के नहीं होने से आपकी बाकी संतानों को कोई नुकसान नहीं होगा। मगर उसके साथ वे हमारे आस पास की दुनिया में विनाश ले आएंगे।

इस बीच, गांधारी ने अपने बड़े पुत्र दुर्योधन को गोद में उठा लिया। उसे कोई आवाजें सुनाई नहीं दी, न ही कोई अशुभ संकेत महसूस हुआ। वह अपने बड़े पुत्र को लेकर बहुत उत्साहित थी। वह उसे पालने और बड़ा करने के लिए बहुत आतुर थी। विदुर ने कहा, ‘बुद्धिमान लोगों ने हमेशा से कहा है कि परिवार के कल्याण के लिए किसी व्यक्ति का बलिदान, गांव के कल्याण के लिए परिवार का बलिदान और देश के कल्याण के लिए गांव का बलिदान किया जा सकता है। यहां तक कि किसी अमर आत्मा के लिए दुनिया का बलिदान भी किया जा सकता है।’

‘हे भ्राता, आपका यह शैतानी बच्चा मानवता की आत्मा को नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए यमलोक से आया है। उसे अभी मार डालिए। मैं शपथपूर्वक कहता हूं कि उसके भाईयों को कोई नुकसान नहीं होगा और आप अपने 99 राजकुमारों के साथ आनंद से रह सकेंगे। मगर इसे जीवित नहीं छोड़ना चाहिए।’ लेकिन अपने सगे बेटे से धृतराष्ट्र के मोह ने उनकी बुद्धि खराब कर दी। फिर दुर्योधन अपने 100 भाई-बहनों के साथ हस्तिनापुर के महल में पला-बढ़ा, जबकि पांडव जंगल में बड़े हुए।

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