Friday 20 January 2017

शकुंतला और राजा दुष्यंत

शकुंतला....


महाभारत की कथा कुरु वंश से शुरू होती है जो राजा भरत के वंशज थे | राजा भरत पुरु वंश के थे जिनके माता का नाम शकुंतला और पिता का नाम राजा दुष्यंत था | पुराणों में बताये अनुसार इस सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी से अत्रि का जन्म हुआ था | इसके बाद अत्रि से चन्द्रमा , चन्द्रदेव से बुध और बुधदेव से इलानंदन पुरुरुवा का जन्म हुआ | पुरुरवा से आयु , उसके बाद आयु से राजा नहुष और उसके बाद राजा नहुष से ययाति का जन्म हुआ | ययाति से पुरु का जन्म हुआ जिनसे  पुरु वंश का उदय हुआ था |पुरु के वंश में ही आगे चलकर महान प्रतापी सम्राट राजा भरत का जन्म हुआ था और राजा भरत के वंश में ही आगे चलकर राजा कुरु हुए जो महाभारत कथा की नीव माने जाते है | कुरु वंश के बारे में जानने से पहले आपको पुरु वंश के महान सम्राट राजा भरत के जन्म की कहानी आप लोगो को बताना चाहते है जो इस प्रकार है |

पुरु वंश में राजा दुष्यंत नामक एक प्रतापी राजा का जन्म हुआ था जो बहुत शूरवीर और प्रजापालक थे | एक बार की बात है कि राजा दुष्यंत वन में आखेट के लिए गये | जिस वन में वो आखेट खेलने गये थे उसी घने वन में एक महान ऋषि कण्व का भी आश्रम था | राजा दुष्यंत को जब ऋषि कण्व के उस वन में होने का पता चला तो वो ऋषि कण्व के दर्शन करने के लिए उनके आश्रम में पहुच गये | जब उन्होंने आश्रम में ऋषि कण्व को आवाज लगायी तो एक सुंदर कन्या आश्रम से आयी और उसने बताया कि ऋषि तो तीर्थ यात्रा पर गये हुए है | राजा दुष्यंत ने जब उस कन्या का परिचय पूछा तो उसने अपना नाम ऋषि पुत्री शकुंतला बताया |

राजा दुष्यंत को ये सुनकर आश्चर्य हुआ कि ऋषि कण्व तो ब्रह्मचारी है  तो शकुंतला का जन्म कैसे हुआ तो शकुंतला ने बताया कि “मेरे माता पिता तो मेनका-विश्वामित्र है जो मेरे जन्म होते ही उन्हें जंगल में छोड़ आये तब एक शकुन्त नाम के पक्षी ने मेरीरक्षा करी इसलिए मेरा नाम शकुंतला है जब जंगल से गुजरते हुए कण्व ऋषि ने मुझे देखा तो वो मुझे अपने आश्रम में ले आये और पुत्री की तरह मेरा पालन पोषण किया ” | शकुंतला की सुन्दरता और बातो पर मोहित होकर राजा दुष्यंत ने उससे विवाह करने का प्रस्ताव रखा |शकुंतला भी राजी हो गयी और उन दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया और वन में ही रहने लग गये |

एक दिन उन्होंने शकुंतला से अपने राज्य को सम्भलने के लिए वापस अपने राज्य जाने की इज्जात मागी और प्निशानी के रूप में अंगूठी देकर चले गये | एक दिन शकुंतला के आश्रम में ऋषि दुर्वासा आये जिस समय शकुंतला रजा  दुष्यंत के ख्यालो में खोई हुयी थी जिससे ऋषि का उचित आदर सत्कार नही कर पायी जिससे क्रोधित होकर ऋषि दुर्वासा ने श्राप दिया कि वो जिसे भी याद कर रही है वो उसे भूल जाएगा | शकुंतला ने ऋषि से अपने किये की माफी माँगी जिससे ऋषि का दिल पिघल गया और उन्होंने उपाय में प्रेम की निशानी बताने पर याददाश्त वापस आने का आशीर्वाद दिया |

उस समय तक शकुंतला गर्भवती हो चुकी थी | जब ऋषि कण्व वापस तीर्थ यात्रा से लौटे तो उनको  पुरी कहानी शकुंतला ने बताई | ऋषि ने शकुंतला को अपने पति के पास जाने को कहा क्योंकि विवाहित कन्या को पिता के घर रहना वो उचित नही मानते थे | शकुंतला सफर के लिए निकल पड़ी लेकिन मार्ग में एक सरोवर में पानी पीते वक्त उनकी अंगूठी तालाब में गिर गयी जिसे एक मछली ने निगल लिया | शकुंतला जब राजा दुष्यंत के पास पहुचे तो ऋषि कण्व के शिष्यों ने शकुंतला का परिचय दिया तो राजा दुष्यंत ने शकुंतला को पत्नी मानने से अस्वीकार कर दिया क्योंकि वो ऋषि के श्राप से सब भूल चुके थे | राजा दुष्यंत द्वार शकुंतला के अपमान के कारण आकाश में बिजली चमकी और शकुंतला की माँ मेनका उन्हें ले गयी |

उधर वो मछली एक मछुवारे के जाल में आ गयी जिसके पेट से वो अंगूठी निकली | मछुवारे ने वो अंगूठी राजा दुष्यंत को भेंट दे दी तब राजा दुष्यंत को शकुंतला के बारे में सब याद आ गया | महाराज ने तुरंत शकुंतला की खोज करने के लिए सैनिको को भेजा लेकिन कही पता नही चला | कुछ समय बाद इंद्रदेव के निमन्त्रण पर देवो के साथ युद्ध करने के लिए राजा दुष्यंत इंद्र नगरी अमरावती गये | संग्राम में विजय के आबाद जो आकाश मार्ग से वापस लौट रहे थे तब उन्हें रास्ते में कश्यप ऋषि के आश्रम में एक सुंदर बालक को खेलते देखा | मेनका ने शकुंतला को कश्यप ऋषि के आश्रम में छोड़ा हुआ था |वो बालक शकुंतला का पुत्र ही था

जब उस बालक को राजा दुष्यंत ने देखा तो उसे देखकर उनके मन में प्रेम उमड़ आया वो जैसे ही उस बालक को गोद में उठाने के लिए खड़े हुए तो शकुंतला की सहली ने बताया कि अगर वो इस बालक को छुएंगे तो इसके भुजा में बंधा काला डोर साप बनकर आपको डंस लेगा | राजा दुश्न्त ने उस बात का ध्यान नही दिया और बालक को गोद में उठा लिया जिससे उस बालक के भुजा में बंधा काला डोरा टूट गया जो उसके पिता की निशानी थी  | शकुंतला की सहेली ने सारी बात शकुंतला को बताई तो वो दौडती हुयी राजा दुष्यंत के पास आयी | राजा दुष्यंत ने ने भी शकुंतला को पहचान लिया और अपने किये की क्षमा माँगी और उन दोनों को अपने राज्य ले गये | महाराज दुष्यंत और शकुंतला ने उस बालक का नाम भरत रखा जो आगर चलकर एक महान प्रतापी सम्राट बना |

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